Thursday, December 30, 2010

स्वागत है आगत का

स्वागत है आगत का
नव हो प्रभात
उज्जवल गात
तरु नव, नव पल्लव
नव हो साँझ नव रात
निर्झर सी हंसी प्रफुल्लित ललाट
प्रेम रस पगा हो जीवन
दुःख न आये पास
आओ हिलमिल करें प्रार्थना
सुखमय हो सबका जीवन
मंगलमय हो नववर्ष नवप्रभात * सतीश एलिया डॉ अपर्णा एलिया

स्वागत आगत का

स्वागत है आगत का
नव हो प्रभात
उज्जवल गात
तरु नव, नव पल्लव
नव हो साँझ नव रात
निर्झर सी हंसी प्रफुल्लित ललाट
प्रेम रस पगा हो जीवन
दुःख न आये पास
आओ हिलमिल करें प्रार्थना
सुखमय हो सबका जीवन
मंगलमय हो नववर्ष नवप्रभात


* सतीश एलिया डॉ अपर्णा एलिया

Tuesday, February 9, 2010

फागुन आयो री


इन दिनों भोपाल पलाश खिल रहा है मेरे घर के सामने खिले पलाश का नज़ारा मैंने खास आपके लिए अपने केमरे में क़ैद किया

Thursday, June 4, 2009

फलसफा जिंदगी का

जिंदगी की जंग में कई मकाम ऐसे आते हैं जब आदमी नितांत अकेला महसूस करता है, दरअसल वह हमेशा ही अकेला होता है लेकिन ज्यादातर समय वह खुद को भ्रमित करता रहता है, परिवार, दोस्त यार, काम,निंदा, पूजापाठ इत्यादि में खुद को भुलाए रखता है। सच्चाई तो यही है कि वह हमेशा ही अकेला होता है; जब भ्रम टूटता है तो वह यह समझता है कि मैं टूट गया हूं जबकि यह भी एक नया भ्रम होता है; हम आखिर एक भ्रम से उूसरे भ्रम के बीच क्यों भटकते रहते हैं आखिर बिना भ्रम के जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती क्या, कोई बिना भ्रम के भी जी सकता है यह हमें कल्पना में भी नहीं आता क्योंकि हम भ्रम रहित न खुद हो पाते और न ही इसकी कल्पना ही कर पाते हैं, भगवदगीता में यही सब तो समझााने की चेष्टा कष्ण करते हैं, वे यही तो कहते हैं कि जो खत्म हो गया वह तुम्हारा नहीं था जो सामने है वह भी तुम्हारा नहीं है और जो तुम हो वह भी तुम नहीं हो, तुम्हें न तो कोई जला सकता है और न ही कोई तुम्हें नष्ट कर सकता है तुम आत्मा हो शरीर नहीं, आत्मा न जन्म लेता है और न ही मरता है, आत्मा ही ईश्वर है और बाकी सब कुछ उसी में समाया हुआ है, निष्कर्ष यही है कि हम भ्रम में न रहें न पद के न सौंदर्य के न संपत्ति के और न ही किसी किस्म की लालसा के, यदि हम इससे उबर पाए तो यही हमें अपने वास्तविक स्वरूप से परिचित करा देगा तब सब बंधन नष्ट हो जाएंगे या उनकी प्रतीति खत्म हो जाएगी क्योंकि असल में तो वे हैं ही नहीं बस हमें उनकी प्रतीति होती है जो भ्रम है। भ्रमों से उबरना ही मुक्ति है, मोक्ष है, आनंद है।

Friday, May 29, 2009

बेशर्मी इज द बेस्ट पाॅलिसी

सबसे पहले तो इस शीर्षक के लिए आॅनेस्टी इज द बेस्ट पाॅलिसी के प्रवर्तकों, फालोअरों और पक्षधरों से क्षमायाचना करता हूं, जैसे कि पूर्वज गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरितमानस लिखने की शुरूआत में वंदउ खलव्रंद कहते हुए दुष्टों को नमन किया था, क्योंकि गुसांई जी का मानना था कि उनकी कृपा के बिना मानस का लेखन नहीं हो पाता। तो मित्रों मैं ईमानदारी के झंडाबरदारों से क्षमा याचना करते हुए नए जमाने की नई बात यानी नए युग स्लोगन बेशर्मी इज द बेस्ट पाॅलिसी के प्रमोशन के लिए आपसे रूबरू हूं। क्यांेकि वो जमाना लद चुका है जब ईमानदारों की कद्र होती थी, मेरी बात को यूं समझें कि अब लाल साबुन से नहाने और तंदुरूस्त रहने के विज्ञापनों का जमाना लद गया है और संदल समेत एक दर्जन खुश्बुओं में आने वाले साबुनों का जमाना है। इस नए स्लोगन के प्रमोशन के लिए मैं क्यों आगे आया इसकी भी रोचक और प्रेरक दास्तां है। मेरे एक परिचित हैं, मित्र कहलाने लायक कोई योग्यता उनमें न तो है और न ही वे इस तरह की वाहियात बातों में यकीन ही रखते हैं। उनकी खूबी ये है कि वे सफल हैं, और उसकी जड. वे बेशर्मी को मानते हैं, गुनते हैं और धारण करते हैं। वे शरीर विज्ञान की इस धारणा के भी खिलाफ हैं कि रीढ. की हडडी शरीर का सबसे महत्वपूर्ण अंग है, वे यहां तक मानते हैं कि इसकी जरूरत ही क्या है! तो जनाब वे कहते हैं सफल होने के लिए चमचागिरी महत्वपूर्ण गुर है, लेकिन मूल मंत्र तो बेशर्मी है। एक दफा यह जीवन का अविभाज्य अंग बन जाए तो चमचागिरी, चुगलखोरी, टांग खिंचाई इत्यादि सहयोगी गुणों के जरिए सफलता मिल ही जाती है। उनका जीवन प्रत्यक्षं किं प्रमाणं की तरह मेरे सामने है। अपेक्षाकृत कम शिक्षित, कम अक्ल और अविश्वसनीय होने के बावजूद वे न केवल सफल हैं, बल्कि राह में आने वाले हर किस्म के रोड.े को हटाने में सक्षम हैं। उनकी पूरी सफलता में अहम किरदार बेशर्मी का ही है। वे अपनी कीर्ति के ऐसे ऐसे किस्से सहजता से सुनाते रहते हैं कि सुनने वाले हर शख्स की आंखों में परिहास की चमक कौंध जाती है, वे इसे भांप लेते हैं, जान लेते हैं लेकिन इस सबके बावजूद उन्हें इस सबसे कोई फर्क नहीं पड.ता, इसीलिए तो वे सफल हैं। अब केंद्र में फिर यूपीए की सरकार आ गई तो वे बोले देखा बेशर्मी ही सफलता का एकमात्र पैमाना है, हमने कहा कैसे! तो कहने लगे लोकतंत्र में परिवारवाद को कोई जगह नहीं होना चाहिए, हमने कहा हां, वे बोले, लेकिन हकीकत में क्या है, नेहरू जी के कुनबे से चार सांसद चुने गए, इनमें से राहुल सुपर पीएम और सोनियाजी अल्टा सुपर पीएम हैं। फारूख अब्दुल्ला और उनके दामाद सचिन पायलट मंत्री बन गए, बेटा उमर पहले ही मुख्यमंत्री बन चुके हैं। करूणानिधि मुख्यमंत्री, बेटा एम स्टालिन उपमुख्यमंत्री, दामाद एवं भानजा दयानिधि मारन केंद्र में मंत्री, बेटा अझागिरी भी केंद्र में मंत्री, बेटी कणिमोझी को मंत्री नहीं बनवा पाए तो क्या उनके लिए और कोई पद दिला देंगे। संगमा की बेटी अगाथा भी मंत्री बन गई।
मैंने पूछा ईमानदारी इज बेस्ट पाॅलिसी को खारिज करने का इस वंशवाद से क्या ताल्लुक! वे बोले, ताल्लुक है। वो ये कि जो होना चाहिए वह नहीं होना ही सफलता है, इसी तरह आॅनेस्टी इज द बेस्ट पाॅलिसी होना चाहिए के पीछे पड.े रहोगे तो सफल कैसे होगे? सफलता पाना है तो बेशर्मी इज बेस्ट पाॅलिसी पर अमल करो, भले ही हर और दफतर की दीवाल पर आॅनेस्टी की तारीफ वाला स्लोगन लिखवा लो और उसे रोज अगरबत्ती भी लगाओ, लेकिन उसे दिल में मत बसाओ। दिल में जो बसा हो उसका जिक्र भी कोई करता है भला। श्रीमान सफल के इस दर्शन ने मुझे झकझोरा डाला, लेकिन मेरे शरीर के वर्तमान डीएनए में तो इस पर अमल मेरे लिए नितांत असंभव लग रहा है, इसलिए में उनके प्रभावी भाषण से हिल गया हूं। मैं असपफल ही रहना चाहता हूं, हो सकता है यही मेरी नियति हो। इस कथा ने आपके मन में भी हलचल मचाई हो तो लिखिएगा जरूर, आमीन!